Pai π ki khoj kisne ki
पाई (π) के मान की खोज का श्रेय महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट को दिया जाता है। उन्होंने अपने ग्रन्थ "आर्यभट्टीय" में पाई के मान को 3.1416 के रूप में दिया था। यह मान आज भी लगभग समान रूप से स्वीकार किया जाता है।
आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में गुजरात के बैंगलोर जिले में हुआ था। वे एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण खोजें कीं, जिनमें पाई के मान की खोज भी शामिल है।
आर्यभट्ट ने पाई के मान की गणना एक ज्यामितीय विधि का उपयोग करके की थी। उन्होंने एक वृत्त को 96 भागों में विभाजित किया और प्रत्येक भाग की परिधि को मापा। फिर उन्होंने इन परिधियों का औसत निकाला, जो कि 3.1416 था।
आर्यभट्ट की खोज के बाद, कई अन्य गणितज्ञों ने पाई के मान की गणना में सुधार किया। आज, पाई के मान को 100 दशमलव स्थानों तक ज्ञात है।
पाई एक अपरिमेय संख्या है, जिसका अर्थ है कि इसका दशमलव विस्तार अनंत है और इसमें कोई भी पुनरावृत्ति नहीं है। यही कारण है कि पाई के मान की गणना करना एक कठिन कार्य है।
पाई का उपयोग कई गणितीय और वैज्ञानिक अनुप्रयोगों में किया जाता है। इसका उपयोग वृत्त के क्षेत्रफल, परिधि, आयतन और अन्य गुणों की गणना करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, पाई का उपयोग खगोल विज्ञान, इंजीनियरिंग और अन्य क्षेत्रों में भी किया जाता है।